Einstein's theory of relativity

आल्बर्ट  आइंस्टाइन 






प्रस्तावना


  एक दिन जब आइंस्टाइन अपने सापेक्षता के सिद्धांत के बारे में समीक्षा कर रहे थे ( जो तब तक खास के रूप में नहीं जानी जाती थी ) , उन्होंने इस तथ्य के बारे में सोचा की अगर कोई इंसान किसी बिल्डिंग की छत पर से कूदे तो  वो अपने वजन को महसूस नहीं कर सकता। यह विचार , जिसे उन्होंने बाद में "अपनी जिंदगी का सबसे आनंदित विचार" के रूप में वर्णन किया, वह एक बीज था जिसके आधार पर सापेक्षता का सिद्धांत का विकास हुआ ।


व्यापक सापेक्षता का सिद्धांत समजने में ज्यादा मुश्किल नहीं है। पर इसका गणित थोडा जटिल और वक्र अवकाशीय भूमिति से जुड़ता है जो समझने में थोडा मुश्किल है। आइंस्टाइन ने अपने सिद्धांत के लिए गणित के साथ काफी सालो तक तब तक महेनत की जब तक उन्हें अपने प्रख्यात समीकरण क्षेत्र के सही स्वरूप न मिला। जब की यह समीकरण काफी आसान दिख रहा था, यह समीकरण वास्तव में 10 अलग अलग डिफरेंशियल समीकरण से बना है और इसे इस तरह व्यवहार में उपयोग नहीं कर सकते। आइंस्टाइन अपने समीकरण का एक्जेट सोल्युशन की जल्दी मिलने की अपेक्षा नहीं कर रहा था। आश्चर्यजनक रूप से आइंस्टाइन के व्यापक सापेक्षता का  पहेला सोल्युशन मिलने के बाद कार्ल स्क्वार्ज़चाइल्ड ने 1915 में उसका आखिरी स्वरूप प्रकाशित किया। यह सोल्युशन एक विशाल स्थिर गोलीय पदार्थ के गुरुत्वीय क्षेत्र का वर्णन करता है। उसके बाद कोई और सोल्युशन नही मिले जब तक नए गणितीय साधन और कंप्यूटर की सुविधा नहीं मिली।

एकरूपता का सिद्धांत


यदि कोई स्पेसशिप फ्री फॉल की स्थिति में है, उसके अंदर का सबकुछ भारहीन लगेगा। एक बंद स्पेसशिप में बैठा इंसान  ये बताने के लिए सक्षम नहीं होगा की स्पेसशिप फ्री फॉल की स्थिति में है, या कॉन्स्टंट स्पीड से सितारों के बीच जहाँ कोई खास गुरुत्वाकर्षण का अस्तित्व नहीं है वहां  सैर कर रहा है। कोई भी मैकेनिकल एक्सपेरिमेंट (प्रयोग) में दोनों केस में वो एसा ही परिणाम दे सकता है।और, बंद स्पेसशिप में बैठा हुआ इंसान यह भी नहीं बता सकता की वास्तव में स्पेसशिप किसी ग्रह की सरफेस पे खड़ा है या तारो के अवकाश में कॉन्स्टंट प्रवेगीय गति से प्रवेगमान है। आइंस्टाइन बताते है की यह सिर्फ वर्ताव में समानता नहीं है बल्कि वास्तव में दोनों एक ही भौतिक स्थिति में है। दूसरे शब्दों में यह कह सकते है की, कोई भी फ्रेम गुरुत्वाकर्षण के क्षेत्र में मुक्तपतन कर रही है तो वह गुरुत्वाकर्षण के अभाव में फ्रेम का प्रवेगीय गति करने के बराबर है। और गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में स्थित फ्रेम , गुरुत्वाकर्षण के अभाव में प्रवेगीय फ्रेम के बराबर है।

पर! प्रकाश के बारे में क्या कह सकते है? अगर यह एकरूपता गुरुत्वीय क्षेत्र में भी सही है, प्रकाश की किरणे मुक्तपतन करती हुई किसी फ्रेम में सीधी रेखा में गति करेगी पर स्थित फ्रेम के सापेक्ष में वह निचे की ओर थोड़ी मुड़ेगी। (आकृति -1) क्या प्रकाश पे गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव पड़ता है? सामान्य सापेक्षता का सिद्धांत के अनुसार प्रकाश पे गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव होता है और यह प्रभाव तारो से निकलने वाली प्रकाश की किरणे और प्रयोगों द्वारा साबित भी किया गया है।


वक्र के स्वरूप में गुरुत्वाकर्षण


आइंस्टाइन ने कहा था की गुरुत्वाकर्षण को अवकाश-समय में एक वक्र के रूप में देखा जा सकता है, न कि दो पदार्थ के बिच में लगते बल के रूप में। (वास्तव में आइंस्टाइन के मुताबिक गुरुत्वाकर्षण अवकाश-समय में एक वक्र है, कोई बल नहीं। पर प्रश्न यह है की वास्तव में गुरुत्वाकर्षण है क्या? यह एक सैद्धांतिक सवाल है, कोई एक भौतिक सवाल नहीं और इसे हम अभी यहाँ नहीं पाएंगे)

अवकाश-समय के वक्र द्वारा हम गुरुत्वीय क्षेत्र में पदार्थो के बिच का वर्ताव कैसा समजा सकते है? इसे समझने के लिए हम एक वक्र तंत्र प्रणाली की ओर देखते है जिसे हम सब हमारी पृथ्वी की सरफेस के रूप में जानते है। सबसे पहले हमें हमारी वक्र सपाटी के समकक्ष एक सीधी रेखा को ढूंढना होगा। हम कुछ रेखाओ को दो बिंदु ओ के बिच किसब से छोटी रेखा के रूप में व्याख्यायित कर सकते है या फिर इसके विकल्प के रूप में एक ऐसी रेखा जिसके साथ हम चले अगर हम वक्र सपाटी के सापेक्ष में मुड़ते नहीं ( हम सिर्फ सपाटी के वक्र के साथ मुड़ेंगे ) ऐसी रेखा को जिओडेसिक कहेंगे। गोलीय सपाटी के ऊपर एक सबसे बड़ा सर्कल होता है, यह बडा सर्कल का केंद्र , गोले का केंद्र है। उदाहरण के रूप में रेखांश जिओडेसिकस है।



अब कल्पना कीजिए की दो जहाज विषुववृत की दो बिन्दुओ से शुरू करते हुए एक समान वेग से उत्तर की ओर सीधा चल रहा है। शुरू में दोनों जहाज एक दूजे के समान्तर रहकर अपनी दरियाई यात्रा करेगा। पर कुछ समय के बाद  वे पूर्व-पश्चिम की दिशा में एक दूजे के करीब आते जायेंगे। यदि समय-अवकाश वक्र है तो अवकाश में दो जिओडेसिक्स समय की दिशा में और करीब आएंगे, हम दो पदार्थो जो एक दूसरे के सापेक्ष में स्थित थी वो एक साथ चलना शुरू करती है (सिर्फ समय में चल रही है) वह एक दूजे के करीब तब आती है यदि  कोई बल उन्हें आकर्षित कर रहा हो। 

गुरुत्वीय क्षेत्र में इन दोनों पदार्थो के बीच का अंतर समान रखने के लिए हमें क्या करना होगा? इसके लिए हम पृथ्वी की सपाटी की ओर फिर से देखते है।  दो अक्षांशों के बीच का अंतर अचल ही रहता है लेकिन विषुववृत की सिवाय के अक्षांश जिओडेसिक्स नहीं है। अक्षांश के साथ चलने का मतलब है की पृथ्वी के सपाटी के साथ सतत मुड़ना। यदि यह समझने में मुश्किल लग रहा है तो ध्रुव के दो सब से करीब अक्षांशों के बारे में सोचे, उसके आसपास का 10 मीटर त्रिज्या का एक सर्कल चुने। स्पष्टरूप से यदि कोई इस सर्कल का अनुसरण करना चाहता है तो उसे सतत मुड़ना पड़ेगा। इसीलिए यदि दो दरियाई सफ़र करने वाले जहाजों के बीच अचल अंतर रखना है तो दोनों में से एक जहाज को हर समय अपनी जगह से मुड़ना होगा। इसी तरह, गुरुत्वीय क्षेत्र में एकपदार्थ को दूसरे पदार्थ से अचल अंतर पे रखने हेतु एक बल जरूरी है।

    अब हम न्यूटन के पहले नियम में थोडा सा बदलाव लाएंगे और  " यदि किसी पदार्थ पर जब तक कोई बल नहीं लगता तब तक वो सीधी रेखा में अचल गति करता है " यह कहने के बजाय हम यह कहेंगे  "बिना किसी बल के कोई भी पदार्थ समय-अवकाश में जिओडेसिक की साथ चलता है"  जहां गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव नहीं है, वहाँ समय-अवकाश समतल है। (इस सन्दर्भ में समतल का अर्थ वक्र  नहीं है ) और यह जिओडेसिकस समय-अवकाश में सीधी रेखाएं है अथवा अवकाश में सीधी रेखा के साथ अचल गति है। किसी भारी पदार्थ की हाजरी में, समय-अवकाश वक्र है और  जिओडेसिक्स अवकाश में सीधी रेखा में अचल प्रवेग (मुक्तपतन) , किसी भारी पदार्थ के केंद्र की कक्षा अथवा दूसरे कोई पदार्थो का गुरुत्वीय क्षेत्र में वर्ताव हो सकता है। गुरुत्वीय क्षेत्र कोई बल क्षेत्र नहीं है पर समय-अवकाश द्वारा पिंड (दलीय पदार्थ) और ऊर्जा की हाजरी में रचित समय-अवकाश है। 


गुरुत्वीय लाल विचलन और समय विस्तार 


  चलो एक बार इक दृश्य की ओर नजर करते है: एक बहुत बड़ा अंतरिक्ष यान तारो के बीच के अवकाश में ऊपर की दिशा में प्रवेगीय है। अंतरिक्ष यान के फर्श पर एक प्रकाश का उदगम है।  जब तक प्रकाश फर्श से छत तक पहुचती है तब तक  अंतरिक्ष यान कुछ वेग प्राप्त करता है। जब प्रकाश छत तक पहुचती है,  अंतरिक्षयान प्रकाश के उदगम से दूर जाती है, जैसे की प्रकाश फैलता है। डोप्प्लर इफ़ेक्ट की वजह से अ छत की ऒर के अवलोकनकार को प्रकाश के उद्गम की ओर के अवलोकनकार की सापेक्ष में प्रकाश की आवृत्ति को  लाल में बदला हुआ (छोटी आवृति वाला)  देखेगा। उसी तरह, फर्श पर का अवलोकनकार  छत के पास रहे उदगम से आते प्रकाश को नीले(ऊँची आवृति वाला)  में बदला हुआ देखेगा। एकरूपता के सिद्धांत के मुताबिक , बिलकुल ऐसा ही एक गृह पर स्थित अंतरिक्षयान के लिए सही है। इसीलिए , टावर की चोटी पे खड़े इंसान को जमीन पर से आते प्रकाश को लाल में बदला हुआ देखेगा और जमीन पर खड़े इंसान को टावर की चोटी पर से आते प्रकाश को नीले में बदला हुआ देखेगा।  इस घटना को गुरुत्वीय लाल विचलन कहते है।

    अब, मानो की दो समान लेसर  उदगम में से एक जमीन पर है और दुसरी बड़े टावर की चोटी पर है। टावर की चोटी पर खडे  अवलोकनकार के पास एक यन्त्र है जिससे वह प्रकाश के तरंगो के चक्र की संख्या गिन सकता है। वह यन्त्र को एक सेकंड के लिया कार्यान्वित  करता है और उसके पास  की प्रकाश के चक्र की संख्या और जमीन पर की प्रकाश की संख्या से तुलना करता है।  क्योकि जमीन से आनेवाली प्रकाश लाल रंग में विचलित है ,  जमीन के उद्गम से ऊपरी उद्गम के चक्र की संख्या ज्यादा है।पर वह जानता है कि दोनों प्रकाश के उद्गम समान है और इसीलिए अवलोकनकार प्रत्येक सेकंड में एक समान चक्र की संख्या की गिनती करेगा जैसा उसने अपने उद्गम के लिए गिनती  करी थी। वह  यह तारण निकलेगा की, जब उसके लिए एक सेकंड पसार होता है, 1 सेकंड से भी कम जमीन पर से पसार होता है, या जमीन पर का समय धीरे चल रहा है। इसे गुरुत्वीय समय विस्तार कहते है। समय विस्तार के विपरीत सापेक्ष वेग के कारण , यहाँ दो अवलोकनकार जिसकी घडी धीमी चल रही है वह इस बात से सहमत है। नियम यह कहता है कि, गुरुत्वीय क्षेत्र के दौरान घडी धीमी चलती है, न की जैसे कई बार गलती से कहते है कि जहाँ गुरुत्वाकर्षण ज्यादा बलवान है वहाँ घडी धीरे चल रही है। प्रकृतिक  रूप से यह सच है कि,  गुरुत्वीय 
क्षत्र मे कम मतलब किसी आकर्षय पदार्थ से नजदिक और इस तरह गुरुत्वाकर्षण मजबूत  होता है, मगर  गुरुत्वीय समय  भी अनुमानित गुरुत्वीय क्षेत्र के लिए सही है।

   गुरुत्वीय समय विचलन बहुत से सवालो को बढ़ावा देता है। व्यापक सापेक्षता में हम दो अवलोकंकारो को दो अलग अलग सन्दर्भ  के बीच रख सकते है। गुरुत्वीय समय विचलन के कारण उन दोनों अवलोकनकारो के बीच हमेशा अंतर रहेगा और वह एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक माहिती लेने के लिए समय लेगा। माहिती को ले जाने वाला वाहक (उदहारण के रूप में प्रकाश ) इस समय गुरुत्वकर्षण के असर के नीचे होगा। अब सवाल यह पैदा होता है  क़ि, जो धीमी घडी है क्या वह असलियत में धीमी चल रही है या फिर वह दूर अंतर पे खड़े  अवलोकनकार को ऐसी दिख रही है?फिर एक बार,  यह कोई भौतिकी सवाल नहीं है। भौतिक विज्ञान नियम और प्रकृति की वर्ताव को वर्णन करता हुआ समीकरण के साथ सौदा करता है।  इस बात पे अब कोई शंका नहीं कि दूर अंतर पे खडा अवलोकनकार समय विचलन को देख सकता है और सामान्य सापेक्षता  इसकी गिनती और आगाही कर सकता है।  दोनों अवलोकंकारो के समय की तुलना करने का कोई रास्ता नहीं है जो समय और गति की मर्यादा से स्वतंत्र है जहाँ माहिती का  आदान प्रदान कर सकते है। अब सवाल  यह है की क्या  कोई निष्पक्ष सत्य है की वह हमारी नापने कि स्वतंत्रता किसी सिद्धांत पे आधारित है?


टाइडल फाॅर्स (टाइडल बल)



एकरूपता का सिद्धांत नियमित गुरुत्वीय क्षेत्र में बिलकुल सही है। लेकिन असली दुनिया में नियमित गुरुत्वीय क्षेत्र का अस्तित्व नहीं है । अस्तित्व में नहीं है। अगर एक इंसान मुक्तपतन ( फ्रीली फॉलिंग) अंतरिक्षयान में दो गेंद को छोड़ देता है, जो वर्टिकली (लंब दिशा में)  एक दूसरे से दूर है। उसमे से नीचे वाली गेंद पे ऊपर वाली गेंद के मुकाबले गुरत्वकर्षण का प्रभाव कुछ ज्यादा है और वह तेजी से प्रवेगीत होगी। इसीलिए, जैसे समय आगे बढ़ेगा दोनों गेंदों की बिच की दुरी बढ़ेगी। दूसरी ओर,  यदि वह दोनों गेंद को  क्षितिज के समान्तर अंतर से फेकता है, वहाँ दोनों के प्रवेग और दिशा के बीच में अंशतः कोण बनेगा, क्योंकि वे ग्रह के द्रव्यमान केंद्र की ओर प्रवेग कर रहा है। इसीलिए, जैसे समय आगे बढ़ेगा , दोनों के बीच का अंतर कम होता जायेगा। यदि किसी छोटे कण का बादल किसी भारी पदार्थ की ओर मुक्तपतन करता है, तो उसका आकार बदल जायेगा। वह गिरने की दिशा में खीचेगा और  उसKकी लंब दिशा में सिकुड़ेगा। यदि कोई दृढ पदार्थ मुक्तपतन करता है तो वह बल की दशा (हालत) में उसे फॉल ( गिरने की दिशा में) खीचेगा और उसकी लंब दिशा में उसे दबाव देगा। ऐसे बल को टाइडल बल के नाम से जाना जाता है।

   बेशक, अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष में बिना किसी गुरुत्वाकर्षण के मंडरा रहा है, वहां कोई टाइडल फाॅर्स नहीं है और कण का बादल अपने मूल आकार में रहेगा। इस तरह, एकरूपता का सिद्धांत  को किसी छोटे अवकाश में अनियमित गुरुत्वीय क्षेत्र में सही माना जा सकता है जहाँ गुरुत्वीय क्षेत्र व्यवहारिक रूप से नियमित है और टाइडल फाॅर्स  नगण्य है। वह इस पॉइंट पे चोक्कस रूप से सही है। हम यह कह सकते है कि एकरूपता का सिद्धांत स्थानीय स्तर पर सही है।



 सामान्य सापेक्षवाद और न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण



द्रव्य की उपस्थिति समय-अवकाश को सभी दिशाओं में वक्र बनाता है। अवकाश खुद वक्र है इसीलिए अवकाश में  दो सीधी रेखाए जो समान्तर है वो किसी विस्तार के आगे कोण युक्त होगी और नजदीक या आगे से अलग होती है। मगर इस अवकाश  वक्र की असर सामान्यतः बहोत काम या नगण्य होती है। क्योंकि हम सामान्यतः उस वेग के बारे में बात करते है जो प्रकाश के वेग से बहुत कम है। उदहारण के रूप में पृथ्वी की सूर्य के आसपास अपनी कक्षा में 1/10000 के वेग से घूमती है। मतलब , जब हमारी पृथ्वी x दिशा में 1 कि मी घूमती है वह 10000 किमी ct दिशा में घूमती है। स्पष्टरूप से  वक्रता का समय पर असर (समय प्रसरण) इस अवकाश में वक्रता से बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। छोटे अंतराल में वक्रता नगण्य है और अवकाश को समतल माना जाता है। तदुपरांत जब हम अवकाश में लंबे अंतर के बारे में बात करते है हंस अवकाश में गुरुत्वीय क्षेत्र पैदा करते पदार्थ से बहुत दूर चले जाते है, और समय- अवकाश में सभी दिशा में वक्रता बहुत कम हो जाती है। 



जब हम बहुत अधिक गति और बहुत घने और भारी पदार्थ के बारे में बात करते है तब समय वक्रता महत्वपूर्ण बन जाती है। फिर अवकाशीय वक्रता महत्वपूर्ण हो जाती है और क्लासिक गुरुत्वाकर्षण का समीकरण पदार्थो की गति के बारे में सही भविष्यवाणी नहीं कर सकती। कुछ परिस्थिति के उदहारण में किसी न्यूट्रॉन स्टार की करीबी कक्षा में रहे किसी छोटे पदार्थ को देखते है। उसकी कक्षा लंबी परावलयाकर नहीं होगी और न ही ज्यादा जटिल होगी। 



सामान्य सापेक्षवाद की तथ्यता



कुछ परिचित उदहारण और अवलोकन सामान्य सापेक्षवाद की तथ्यता को पुरवार करती है।

पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान प्रकाश का गुरुत्वाकर्षण के कारण मुड़ने का अवलोकन देखा गया है।  पूर्ण सूर्यग्रहण के समय तारो को सूर्य के बहुत करीब देखा गया है।  ग्रहण के दौरान तारो के बीच की दुरी सामान्यतः दुरी से ज्यादा पाई गई। इसका कारण तारो से आने वाली प्रकाश की किरणो का सूर्य के गुरुत्वाकर्षण के कारण मुड़ाव है।





गुरुत्वीय लाल विचलन को काफी भारी तारो जैसे की वाइट ड्वार्फ और न्यूट्रॉन स्टार्स से आने वाली प्रकाश की किरणों के वर्ण पट का अभ्यास करते वक़्त देखा गया था। पृथ्वी से हाई टावर की और लेसर किरणों को भेजने के प्रयोग के दौरान भी थोड़ा सा लाल विचलन को दिखाता है।

गुरुत्वीय समय प्रसरण विमान और उपग्रहों की यथार्थ घडी से नापा जा चूका है। GPS सिस्टम सही समय  के लिए गुरुत्वीय समय को ही लेता है।

बुद्ध गृह की परावलयाकर कक्षा अपनी कक्षा में थोडासा घुमाव ला रहा है। कक्षा में यह बदलाव न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण से समजाया नहीं जा सकता , पर वो सामान्य सापेक्षवाद के समीकरण के बराबर पाई गई है। जबकि बुद्ध सूर्य से सबसे नजदीक होने के कारण उसका गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र ज्यादा शक्तिमान है और सूर्य मंडल के अन्य ग्रहों से ज्यादा तेज घूमता है। अवकाश वक्र का उसकी कक्षा पर असर सुस्पष्ट है।




आइनस्टाइन का क्षेत्र समीकरण


वक्र अवकाश में भौतिकी गणना करने के लिए हमें वक्र अवकाश को वर्णन करने के लिए पहले गणित की जरूरत पड़ेगी। गणित में जो इस क्षेत्र को समजा सकती है उसे हम विकालानीय भूमिति के नाम से जानते है। एक बार हमारे पास वक्रीय समय अवकाश का गणितीय वर्णन आ जाये हम अंतर, वेग और भूमापन का गणन कर सकते है। उसके बाद हम वक्र समय अवकाश में द्रव्य की उपस्थिति और ऊर्जा को खोज सकते है।  आइनस्टाइन का क्षेत्र समीकरण यह सब बताता है। 

 कार्यरूप उदहारण के द्वारा E=mc^2 का वर्णन

अल्बर्ट आइनस्टाइन ने उसके व्यापक सापेक्षतावाद को 1905 में प्रकाशित किया और इस दौरान उन्होंने खोज की द्रव्यमान और ऊर्जा वास्तव में एक जैसी ही चीजे है, जो एक का अति दृढ़ता से दबा हुआ दूसरे की अभिव्यक्ति है। द्रव्यमान-ऊर्जा एकरूपता हम सबके जीवन में बहुत बड़ा असर करता है,  फिर भी कैसे और क्यों हमेशा दिखाई नहीं देता।  फिर भी सापेक्षतावाद किसीको भी समझने के लिए बहुत ही मुश्किल के नाम से प्रतिष्ठित है।



E=mc^2

प्रस्तावना: E=mc^2 का अर्थ क्या है?

जानकारी:

बिना किसी शंका के E=mc^2 विश्व प्रसिद्ध  समीकरण है।इस समीकरण की आइनस्टाइन के व्यापक सापेक्षता के सिद्धांत और इसी श्रेणी के ओर पेज से गणितीय और तार्किक रूप में से व्याख्यायित किया गया है। इसके द्वारा हम यहाँ , इस समीकरण को समजेंगे जो गणित के न्यूनतम स्वरुप में है।

समीकरण का हर अक्षर का मतलब क्या है?

E = mc^2 समीकरण का हरेक अक्षर भौतिकी की कोई चोक्कस प्रमाण को दर्शाता है। जो इस तरह है।

ऊर्जा = द्रव्यमान × (,प्रकाश की गति)^2

दूसरे शब्दों में कहे तो

E= ऊर्जा (जिसे मापने के लिए जुल एकम का उपयोग होता है, J)

M = द्रव्यमान (जिसे नापने के लिए किलोग्राम एकम का उपयोग होता है। )

C = प्रकाश की गति (जिसे मीटर पर सेकंड में नापा जाता है। )

याद रखिए कि इस समीकरण का हर अक्षर इम्पोर्टेन्ट है, और किसी भी अक्षर में जरा सा भी चेंज करने से वो गलत हो जाएगा, जैसे कि,

e= MC^2 लिखने से भी यह समीकरण गलत हो जाएगा।
ऐसा इसलिए क्योंकि,

भौतिकशास्त्री लेटर्स के केस को लेटर्स खुद की तरह महत्व देते है जिससे वह कोई चोक्कस भौतिकी प्रमाण या कॉन्स्टंट  को बता सके।

इसके उपरांत , समीकरण को सही बनाने के लिए हमें c का वर्ग करना होगा। c^2 मतलब हमें c को c  बार लेना होगा। यह हमें इस समीकरण को दूसरे इस रूप में लिखने के लिए भी कहता है, जो थोड़ा सा असामान्य है लेकिन सही है।

  E = m × c × c

ऊर्जा:

 ऊर्जा शब्द थोड़ा सा नया है। जिसका हाल ही में कुछ 19 वी सदी में उपयोग किया गया। जब वह यह समझने के लिए नई थी की शक्ति जो कई अलग अलग प्रक्रिया चलाती है उसे ऊर्जा के कांसेप्ट से वर्णन किया जा सकता है,  जो एक स्वरुप से दूसरे स्वरुप में और ओर दूसरे स्वरुप में रूपांतरित होती है।

उदहारण के रूप में, हर दिन ट्रैन को कोयले से शक्ति मिलती है। कोयला जलने से बोइलर में पानी की भाप बनती है, जो ट्रैन के पहिए से जुडी हुई पिस्टन को दबाती है, पहिए घूमने लगते है ओर ट्रैन गति करने के लिये तैयार होती है। इस उदहारण में हम कोयले में समाई हुई रासायणिक ऊर्जा से शुरू करते है। कोयले को जलाने से और पानी को गर्म करने से रासायणिक ऊर्जा ऊष्मा ऊर्जा (थर्मल ऊर्जा)  में रूपांतरित होती है। अंत में भाप के बल से पिस्टन को पहिए चलाने के लिए थर्मल ऊर्जा गति ऊर्जा (काइनेटिक ऊर्जा) में रूपांतरित होती है।


चलती स्टीम ट्रैन
रासायणिक ऊर्जा - ऊष्मा ऊर्जा - गति ऊर्जा


ऊर्जा के कई प्रकार है, विद्युत् ऊर्जा, गुरुत्वाकर्षण ऊर्जा, न्यूकलीयर ऊर्जा और तनाव ऊर्जा जो स्प्रिंग की रचना में पाई जाती है। उपरांत, सारी ऊर्जा एक दूजे से अलग दीखती है सभी को एक ही तरह से नापा जा सकता है और सारी ऊर्जा को एक समान जाना जाता है। किसी भी ऊर्जा स्त्रोत से पाई जाने वाली ऊर्जा को जुल (J) एकम से नापा जाता है।

रोजिंदा हम इस एकम का उपयोग दो तरह से करते है। जो है-

~ प्रणाली की समस्त ऊर्जा

जैसे की उपर बताया गया, एक उदाहरण  कोयले का ढेर है, जो जब जलता है वो चोक्कस क्रमांक के जुल में ऊर्जा मुक्त करता है, ज्यादातर ऊष्मा और प्रकाश के रूप में। दूसरा, शायद बहुत ही सामान्य उदहारण जो है, 1 मीटर तक सेब को उछालने के लिए 1 जुल ऊर्जा इस्तेमाल होती है।

~ समय के उपर खर्च हुई ऊर्जा

ज्यादातर विद्युत उपकरण ने खर्च की हुई ऊर्जा को वॉट ( W ) में आँका जाता है। 1 सेकंड में 1 जुल ऊर्जा खर्च होने पर 1 वॉट कहते है। मतलब, यदि आपके रूम में 1 बल्ब है जो 100W का आँका गया है, इसका मतलब वो हर सेकंड में 100 जुल ऊर्जा खर्च करता है।

दूसरे उदहारण पे वापस जाते है, सेब को हर सेकंड में 1 मीटर तक ऊपर उठाने का मतलब वो 1 वाट शक्ति का उत्पादन करता है। कई लोगो के लिए ये लंबे समय के लिए कुछ आसान होगा, लेकिन अब कल्पना कीजिए 100 सेब को 1 सेकंड में ऊपर उठना है , मतलब 100 वॉट। मानवीय सीमा के लिए ये बहुत ही बड़ा उत्पादन है, लेकिन कई विद्युत उपकरण के लिए यह कोई नै बात नहीं है। यह असामान्य नहीं है। उदहारण के लिए, कोई बर्तन जो 2000 W या उससे भी ज्यादा आँका गया है। वो वाकई में बहुत ज्यादा सेब है।

यानि, सारांश में , ऊर्जा कई स्वरुप में मिलती है, और वो एक स्वरुप से दूसरे स्वरुप में रूपांतरित हो सकती है। ऊर्जा के मापन का प्राथमिक एकम जुल है।

m = द्रव्यमान

द्रव्यमान को वास्तव में पदार्थ की जड़ता का मापन के रूप में वताख्यायित किया गया है, यानि वो प्रवेग में होता अवरोध है। द्रव्यमान को दूसरे और आसान रूप में इस तरह व्याख्यायित कर सकते है कि पदार्थ में रहे कुल द्रव्य की मात्रा। यह व्याख्या बाद में पूरी तरह से सही नहीं पाई गई, पर यह हमारे इस आशय को स्पष्ट करने हेतु सही है। द्रव्यमान को किलोग्राम ,( Kg ) एकम से नापा जाता है।

याद रखिए, द्रव्यमान मतलब वजन नहीं हैं, इसके बावजूद इसे कई बार ऐसा होना माना जाता है। वजन वास्तव में किसी पदार्थ पे लगता गुरुत्वाकर्षण बल है उसे नाप ने के लिए न्यूटन (N) एकम का उपयोग होता है। उदहारण के तौर पर , अवकाश्यात्री जब चाँद की सरफेस पर चलते है तो उनका द्रव्यमान वाही होता है जो पृथ्वी पर होता है, लेकिन सिर्फ उनका वजन छट्ठे भाग का होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अवकाशयात्री का द्रव्यमान नहीं बदलता , लेकिन चन्द्र का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के मुकाबले छट्ठे भाग का है।

जैसे की ऊर्जा, सारे पदार्थ का द्रव्यमान एक जैसा होता है यह विचार कुछ नया है, और 19 वी सदी के आसपास भी नया ही था। उस समय से पहले, अलग अलग घन, प्रवाही और वायु सब अस्पष्ट रूप से जुड़े हुए मानते थे। ऊर्जा में, अब हम यह ध्यान में राखते है कि द्रव्यमान को न ही बनाया जाता है और न ही नाश किया जाता है। , लेकिन जब वो एक स्वरुप से दूसरे स्वरूप  में रूपं में रूपान्तरित होता है तो उसमें थोड़ा सा बदलाव आता है। उदाहरण स्वरुप, हम पानी को घन (बरफ) से प्रवाही (पानी)  में रूपांतरित कर सकते है और प्रवाही में से वायु (भाप) में भी, लेकिन उसका कुल द्रव्यमान नहीं बदलता।

c = प्रकाश की गति

हम प्रकाश की गति को दर्शाने के लिए c का उपयोग करते है। ' c' लैटिन शब्द 'celeritas' पर से आया है, जिसका मतलब होता है 'धीमा', और यह बहुत ही उचित व्याख्या है। शून्यवकाश में , जैसे  की अवकाश, वो करीबन 186,300 माइल्स प्रति सेकंड ( 3,00,000 किमी प्रति सेकंड ) की रफ़्तार से ट्रावेल करती है। जो प्रति सेकंड में पृथ्वी के सात चक्कर लगाने के बराबर है। 

प्रकाश की गति का सबसे पहले स्पष्ट चोक्कस मापन डेनिश खगोलशास्त्री ओले रोमर ने 1670 के दौरान की थी

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