कल्पना कीजिये की आप एक बगीचे में हो, एक वृक्ष की शाखा के हरे पत्ते की ओर देख रहे हो। हम जानते है कि प्रकाश पत्तो पर से परावर्तित होने के बाद आपकी आँख में प्रवेश करती है और बताती है कि वह हरे रंग की है। वास्तव में प्रकाश है क्या?
17 वी सदी मे दो विचार पहले आये: अंग्रेज वैज्ञानिक आइजेक न्यूटन ने बताया कि प्रकाश सुक्ष्म कणो से बना हुआ है ( उन्होंने उसे अति सूक्ष्म कण कहा) जो गर्म पदार्थ ( जैसे की सूर्य या अग्नि) में से उत्सर्जित होता है, जब की उसी समकालीन, डच भौतिकशास्त्री क्रिस्चियन हाइगीन्स ने बताया कि प्रकाश तरंग स्वरुप है, जो तरंग के रूप में ऊपर नीचे कंपित होता हुआ आगे बढ़ता है।
फिर भी , उन मे से किसी के भी पास इस बारे में संकल्पना नहीं थी की प्रकाश वास्तव में क्या है? ( न्यूटन के इस बारे में कोई स्पष्ट विचार नहीं था की प्रकाश कौन से सूक्ष्म कण का स्वरुप है; हाईजीन के पास यह ख्याल नहीं था कि वो क्या है जो तरंग के रूप में लहराता है। प्रसंगोपात फोटोन सुक्ष्मकण है या तरंग यह प्रश्न का कभी भी पूरी तरह निराकरण नहीं हो पाया।)
1820 में कोठेंहेगन के बेंचटोप का एक स्टेप हमें प्रकाश की रचना की ओर ले जा सकता है जहाँ डेनिश वैज्ञानिक हेन्स क्रिस्चियन ओरस्ट्रेड इलेक्ट्रिसिटी (बिजली) पे व्याख्यान दे रहे थे।
उन्होंने अपने प्रदर्शन के दौरान इस्तेमाल किया हुआ कंपास बैटरी के पास रख दियाऔर उन्होंने देखा की जब उन्होंने बैटरी की स्विच ओन और ऑफ की तब कंपास की सुई को तुरंत ही झटका लगा। इसका मतलब है कि विद्युत् और चुम्बकत्व के बीच सम्बन्ध है या जिसे बाद में बहुत औपचारिक रूप से बाद में वर्णन किया गया,
"विद्युत क्षेत्र में बदलाव चुम्बकिय क्षेत्र को असर करता है ।"
उसके 11 साल बाद, अंग्रेज वैज्ञानिक माइकेल फैराडे ने खोजा की इसका विरुद्ध भी सही है: चुम्बकीय क्षेत्र में बदलाव विद्युत क्षेत्र उत्त्पन्न करता है।
माइकेल फैराडे- 75 साल
जन्म : 22 सितंबर, 1791
निधन : 25 अगस्त , 1867
वे स्कोट्टलैंड के भौतिकशास्त्री जेम्स क्लर्क मैक्सवेल थे जिन्होंने विद्युतीय और चुम्वकत्व के खयालो को जोड़ा और उसकी सुसंगत 'इलेक्ट्रोमैग्नेटिस्म' (विद्युत् से पैदा होने वाले चुम्बकीय बल) का सिद्धांत दिया।
मैक्सवेल-48 साल
जन्म: 13 जून, 1831
निधन: 5 नवम्बर, 1879
लेकिन मैक्सवेल अपनी इस सूझ से तब मशहूर हुए जब उन्होंने प्रकाश का सार समजने के लिए ओरस्ट्रेड और फैराडे के काम को एकसाथ जोड़ा।
उन्हे यह मालूम पड़ा की विद्युत क्षेत्र में बदलाव , चुंबकीय क्षेत्र में बदलाव ला सकता है, जो दूसरी विद्युत क्षेत्र की रचना करता है और इसी तरह चलता रहता है। इसके परिणाम स्वरुप विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र आत्मनिर्भर है, जो बहुत ही तेजी से अविरत पुनरावर्तित होते हुए आगे बढ़ता है। इसके परिणाम यह होता है कि एक स्व निर्भर विद्युतचुम्बकीय क्षेत्र बिना अंत के बहुत ही तेजी से पुनरावर्तित होकर ट्रावेल करता है।
कितना तेज? मैक्सवेल ने इसकी भी गणना की थी, जो करीब 3,000,000,000 मीटर प्रति सेकंड था - जो उस समय के कुछ समय पहले नापी गई प्रकाश की गति से बहुत नजदीक थी ।और इसी तरह प्रकाश बहुत तेजी से अवकाश के माध्यम में गति करता चुम्बकीय क्षेत्र से जुड़ा हुआ विद्युत क्षेत्र है।
आप दो क्षेत्रो को दो डांस पार्टनर की तरह सोच सकते है, जो एक दूसरे से सनातन , अनंत तक लिपटे हुए हो। विधुत और चुम्बकीय क्षेत्र के स्वयं उत्पादन के लिए दोनों को स्टेप में रहना होगा। वो दोनों के लिए संगीत की धुन में ले जायेगा।
अब हम यह जानते है की विद्युतचुम्बकीय तरंगो का एक पूरा स्पेक्ट्रम है, जिसमे हर एक उसकी तरंगलंबाई के द्वारा अलग किये जाते है। ( आप तरंगलंबाई को डांस स्टेप के रूप में सोच सकते है।)
छोटे अंत पर, ऊँची ऊर्जा वाले गामा किरणों की तरंगलंबाई हाइड्रोजन परमाणु से बहुत छोटी होती है, जब की लंबे अंत मे, कम ऊर्जा वाले रेडियो तरंग गुरु ग्रह की तरह चौड़ी होती है। दृश्यप्रकाश विद्युतचुम्बकीय स्पेक्ट्रम का बहुत छोटा टुकड़ा है, जिसकी तरंगलंबाई मीटर की 400 से 700 बिलियन है, जो इ-कोलाई बैक्टेरिया की लंबाई है, या मानव बाल की चौड़ाई का 1 प्रतिशत है।
आप शायद सोच रहे होंगे की हम सिर्फ इसी विस्तार के प्रकाश को क्यों देख सकते है और क्यों दूसरे विस्तार की प्रकाश को नहीं देख पाते। इसके लिए दो कारण जिम्मेदार है-
पहला, "दृश्य" सामान्यतः कुछ प्रकार के रासायनिक प्रक्रिया को शामिल करता है जो जो प्रकाश के द्वारा शुरू होता है। हमारे कोषों की कार्बन आधारित रासायनिकी प्रकाश को दृश्य विस्तार में फेकता है। लंबी तरंगलंबाई प्रक्रिया होने के लिए जरूरी प्रेरित ऊर्जा नहीं ला सकता, जब की छोटी तरंगलंबाई के प्रकाश बहुत ज्यादा ऊर्जा साथ में लाता है और जीवन की सुव्यवस्थित रासायनिकी को बिगाड़ सकता है। ( इसीलिए अल्ट्रावायलेट प्रकाश सनबर्न उत्पन्न करता है।)
दूसरा, 400 से 700 नेनोमीटर की विस्तार उसके शोषण से पहले पानी में थोड़ी दूर तक जा सकती है। ( इसीलिए कप के जितना पानी हमारे लिए पारदर्शक है- लगभग सारी दृश्य प्रकाश उसमे से पसार हो जाती है।)
सबसे पहले आँखों का विकास समंदर में हुआ था और इसलिए इस विस्तार के प्रकाश दूसरे प्रकाश से सबसे ज्यादा क्रम-विकास सम्बंधित फायदों को पकड़ता है।
अब वापस बगीचे की ओर आते है। जब भी आप पत्ते की ओर देखते है, आपकी आँखों में प्रवेश करने वाली प्रकाश चोक्कस विधुतीय और चुम्बकीय तरंगलंबाई का तरंग है। प्रकाश आपके आँखों के दृष्टिपटल से टकरायेगा और शंकु कोशिकाओं में रासायनिक बदलाव से एक चोक्कस आकृति बनाती है, जिसे आपका दिमाग "हरा रंग" समझता है।
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